कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?
चंद्र सी आभा मुख मंडल पर,जुल्फ घटा सी छाई है,
चन्द्रबदन,मृगनयनी हो तुम तन पर चिर तरुणाई है,
चाल चपल चंचला के जैसी, स्वर में तेरे गहराई है,
तुमने मुझको जनम दिया है, या तू मेरी जाई है ?
मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?
कभी हंसाती,कभी रुलाती कभी रोष दर्शाती हो,
कौन हो तुम जो मन की बातें बस मुझको बतलाती हो ?
मेरी कविता,मेरी रचना तू मेरा संसार है,
तूने मेरा चयन किया है ये तेरा उपकार है,
मेरे अंतर मन का दर्पण या मेरी परछाई हो,
कौन हो तुम जो इस दुनिया में मेरी खातिर आई हो ?
- नीतू ठाकुर
वाह !
जवाब देंहटाएंसुंदर लयबद्ध रचना जिसमें स्वाभाविक प्रवाह है। भावप्रवण रचना। बधाई एवं शुभकामनाऐं।
बहुत सुंदर कविता नीतू जी।आपकी सुंदर सुगढ़ लेखनी से निकले शब्द बहुत मधुर और भावपूर्ण है।
जवाब देंहटाएंअति आभार
हटाएंअति आभार
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