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शनिवार, 9 दिसंबर 2017

ज़िंदगी-मौत...नीतू ठाकुर

मौत से पूछा जो हमने
देर कर दी आते आते
मौत अचरज से निहारे
देख मुझको मुस्कुराते
ज़िंदगी ने इस कदर
लूटी हमारी ज़िंदगी
अब तो दिल करता है हर पल
मौत की ही बंदगी
ज़िंदगी तो ख्वाब है
एक दिन मिट जाएगी
मौत है असली हकीकत
एक दिन टकराएगी
मौत से बढ़कर कोई भी
चाहने वाला नहीं
मिल गई एक बार तो फिर
छोड़कर न जाएगी
ज़िंदगी से खूबसूरत
मौत की हर एक अदा
देख ले एक बार जो 
हो पाए न फिर वो जुदा
मुद्दतों के बाद उतरा
आँख से पर्दा मेरे
ज़िंदगी के ख्वाब टूटे
ख्वाब है अब बस तेरे
मुस्कुराई मौत बोली
चाँद सा चेहरा खिला
 खुश नसीबी है मेरी 
जो चाहने वाला मिला 
मेरी खातिर इतनी चाहत 
ज़िंदगी से यूँ  गिला 
ख़त्म कर अब ज़िंदगी का 
जानलेवा सिलसिला 
ज़िंदगी झूठी है जितनी 
उतनी ही मगरूर है 
चल नई दुनिया में जो 
हर रंज-ओ -गम से दूर है 
- नीतू ठाकुर 

16 टिप्‍पणियां:

  1. वफा के किस्से मौत के
    सुने तो बहुत थे,
    पर इतने दिलकश कभी न थे।।
    नीतू जी अप्रतिम अद्भुत।
    शुभ संध्या ।

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    1. बहुत सुंदर प्रतिक्रिया
      आप को पसंद आयी बहुत बहुत आभार

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  2. ज़िंदगी झूठी है जितनी, उतनी ही मगरूर है
    चल नई दुनिया में जो, हर रंज-ओ -गम से दूर है ..
    आदरणीय नीतू जी, मृत्यु एक शाश्वत सत्य और अटल कथ्य है, यूँ कसकर आगोश में भरती है कि जिन्दगी भी शरमा जाए। हर गम से दूर अपना अनोखा बसेरा है ... मृत्यु।
    सत्य कहती, जिंदगी पर व्गयं कसती आपकी दमदार रचना हेतु बधाई व सुप्रभात।

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    उत्तर
    1. बहुत सुंदर प्रतिक्रिया
      आप को पसंद आयी बहुत बहुत आभार
      आप की टिप्पणी हौसला बढ़ा गई

      हटाएं
  3. आदरणीय बहुत बहुत आभार
    यूँ ही आशीष बनाये रखिये

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  4. आदरणीय नीतू जी कैसे तारीफ़ करूँ इस रचना की। मेडीकल फील्ड में हमें एक बात गहराई से सिखाई जाती है - " मौत से घृणा करो "
    अब आपकी रचना की तारीफ़ बस इतनी है कि जीवन और मृत्यु के बीच संवाद में मृत्यु जीत रही है। मृत्यु अटल सत्य है लेकिन फिर भी हम उसका महिमामंडन करने से बचते हैं क्योंकि यह भाव जीवन में आशंकाओं ,नैराश्य और पलायन के द्वार खोलता है। मृत्यु की ओर एक निराश व्यक्ति के बढ़ते क़दम थम सकते हैं जब वह सुनता है स्व. किशोर कुमार साहब की आवाज़ में ये बोल - "
    जीवन मिटाना है दीवानापन
    कोई प्यार जीवन से प्यारा नहीं

    सारे जहाँ की अमानत है ये
    ये जीवन तुम्हारा तुम्हारा नहीं
    हैं जीने के लाखों सहारे यहाँ
    बस एक ही तो सहारा नहीं
    आदरणीय नीतू जी आपकी रचना का कलापक्ष और भावपक्ष शानदार है लेकिन मैंने ऐसी आलोचनात्मक टिप्पणी करना ज़रूरी समझा। उम्मीद है आप इसे सकारात्मक अर्थों में ही स्वीकारेंगी। लिखते रहिये। आपकी हरेक रचना पर फिलहाल टिप्पणी नहीं लिख पा रहा हूँ समयाभाव के कारण। आप इस समय बेहतरीन सृजन कर रहीं हैं।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

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    उत्तर
    1. आदरणीय रवींद्र जी क्या बताऊँ आप को यह रचना पता नहीं कैसे जहन में आई बस मै लिखती गई और जब पढ़ी तो अजीब धरम संकट था इसे पोस्ट करूँ या नहीं क्यों की बहुत ही निराशावादी है. मुझे दर्द भरी कविता लिखने का शौख है पर मै समझ नहीं पा रही थी की करूँ क्या सोचा जब लिख दी है तो पोस्ट कर दूँ. वैसे मै भी आशावादी हूँ पर मेरे अंदर का शायर सिर्फ दर्द भरी दास्ताने लिखता है. बहुत बहुत आभार आप का ना ना करते बहुत कुछ लिख गए आप पर मेरा उद्देश्य गलत नहीं था बस कविता का भाव थोड़ा गड़बड़ है. पर कविता तो ठीक ही है. मुझे हंसी भी आ रही है और दुःख भी हो रहा है की ये मैंने क्या लिख जिसे मिटाने का मन नहीं करता और स्वीकार करने को भी तैयार नहीं है मन.

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  5. निशब्द कर दिया इस रचना ने मुझे. नीतू जी कितनी गहराई से आपने जीवन और मौत का फ़लसफा बयान किया है. वाह... एक छोटा शब्द है इसके लिए. बधाई हो इतनी सुन्दर रचना के लिए.

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. बहुत बहुत आभार आप को पसंद आया लेखन सार्थक हुआ

      हटाएं
  6. बहुत बहुत आभार आप को पसंद आया लेखन सार्थक हुआ

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  7. मृत्यु अटल सत्य है,इस सत्य का ज्ञान जब मन को चारों ओर से घेर लेता है,तब हम ऐसी ही रचनाएँ लिखते हैं। शायद ये भी आशावाद का ही एक रूप है, मन ही मन को समझा लेता है कि भैया,रहना नहीं देस बेगाना है ..

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    1. बहुत बहुत आभार
      कोई ख्वाब लिखता है
      कोई खयाल लिखता है
      मेरा मन तो पागल
      दर्दे हाल लिखता है

      हटाएं

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