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गुरुवार, 28 दिसंबर 2017

पिता.....नादिर खान


वो छुपाते रहे अपना दर्द
अपनी परेशानियाँ
यहाँ तक कि
अपनी बीमारी भी….

वो सोखते रहे परिवार का दर्द
कभी रिसने नहीं दिया
वो सुनते रहे हमारी शिकायतें
अपनी सफाई दिये बिना ….

वो समेटते रहे
बिखरे हुये पन्ने
हम सबकी ज़िंदगी के …..

हम सब बढ़ते रहे
उनका एहसान माने बिना
उन पर एहसान जताते हुये
वो चुपचाप जीते रहे
क्योंकि वो पेड़ थे
फलदार
छायादार ।
- नादिर खान
किताबें बोलती हैं


5 टिप्‍पणियां:

  1. हम सब बढ़ते रहे
    उनका एहसान माने बिना
    उन पर एहसान जताते हुये
    वो चुपचाप जीते रहे
    क्योंकि वो पेड़ थे
    फलदार
    छायादार ।
    बहुत बढ़िया।

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह बहुत खूब ..
    .पिता एक वट वृक्ष सा
    आते जाते सुख ही देय
    चाहे सीचौ नीर जल
    चाहे काटो वाको पेट ! !

    जवाब देंहटाएं
  3. पापा.... सच में बिन इनके हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते मेरे लिए तो माँ पापा आप ही हो

    जवाब देंहटाएं

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