वो छुपाते रहे अपना दर्द
अपनी परेशानियाँ
यहाँ तक कि
अपनी बीमारी भी….
वो सोखते रहे परिवार का दर्द
कभी रिसने नहीं दिया
वो सुनते रहे हमारी शिकायतें
अपनी सफाई दिये बिना ….
वो समेटते रहे
बिखरे हुये पन्ने
हम सबकी ज़िंदगी के …..
हम सब बढ़ते रहे
उनका एहसान माने बिना
उन पर एहसान जताते हुये
वो चुपचाप जीते रहे
क्योंकि वो पेड़ थे
फलदार
छायादार ।
- नादिर खान
किताबें बोलती हैं
बहुत सुंदर रचना
जवाब देंहटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंहम सब बढ़ते रहे
जवाब देंहटाएंउनका एहसान माने बिना
उन पर एहसान जताते हुये
वो चुपचाप जीते रहे
क्योंकि वो पेड़ थे
फलदार
छायादार ।
बहुत बढ़िया।
वाह बहुत खूब ..
जवाब देंहटाएं.पिता एक वट वृक्ष सा
आते जाते सुख ही देय
चाहे सीचौ नीर जल
चाहे काटो वाको पेट ! !
पापा.... सच में बिन इनके हम जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते मेरे लिए तो माँ पापा आप ही हो
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