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बुधवार, 13 दिसंबर 2017

मेरी मधुशाला........ पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा

सम्मुख प्रेम का मधुमय प्याला,
अंजान विमुख दिग्भ्रमित आज पीने वाला,
मधुमय मधुमित हृदय प्रेम की हाला,
सुनसान पड़ी क्युँ जीवन की तेरी मधुशाला।

हाला तो वो आँखो से पी है जो,
खाक पिएंगे वो जो पीने जाते मधुशाला,
घट घट रमती हाला की मधु प्याला,
चतुर वही जो पी लेते हृदय प्रेम की हाला।

मेरी मधुशाला तो बस सपनों की,
प्याले अनगिनत जहाँ मिलते खुशियों की,
धड़कते खुशियों से जहाँ टूटे हृदय भी,
कुछ ऐसी हाला घूँट-घूृँट पी लेता मैं मतवाला।

भीड़ लगी भारी मेरी मधुशाला मे,
बिक रही प्रीत की हाला गम के बदले में,
प्रेम ही प्रेम रम रहा हर प्रेमी के हृदय में,
टूटे हैं प्याले पर जुड़े हैं मन मेरी मधुशाला में!

विषपान से बेहतर मदिरा की प्याला,
विष घोलते जीवन में ये सियासत वाला,
जीवन कलुषित इस विष ने कर डाला,
विष जीवन के मिट जाए जो पीले मेरी हाला।

भूल चुके जो जन राह जीने की,
मेरी मधुशाला मे पी ले प्याला जीवन की,
चढ़ जाता जब स्नेह प्रेम की हाला,
जीवन पूरी की पूरी लगती फिर मधुशाला।



-पुरुषोत्तम कुमार सिन्हा
("कविता जीवन कलश" से)

10 टिप्‍पणियां:

  1. 👏👏👏👏वाह उम्दा ..मेरी मधुशाला

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  2. बहुत खूब
    आप तो माहिर है इस फन में

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर धन्यवाद। आपकी प्रशंसा ही हमें सार्थक बनाती हैं बस।

      हटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  4. आदरणीय मयंक जी, विशेष सम्मान हेतु धन्यवाद। आभार।

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