मोहब्बत का मेरा यह सफर आख़िरी है
ये कागज, ये कलम, ये गजल आख़िरी है
फिर ना मिलेंगे अब तुमसे हम कभी
ये मिलना, ये बिछड़ना, ये अश्क आख़री है
मोहब्बत का मेरा यह सफर आख़री है
ऐ मुसाफिर जाने से पहले सुन तो ज़रा
अपनी हाथों से मुझे दफना जाना जरूर
मेरी ख्वाहिशाें का ये मुन्तबर आख़री है
फिर ना मिलेंगे अब तुमसे हम कभी
क्योंकि तेरे दर्द का अब ये सितम आख़िरी है।
मोहब्बत का मेरा यह सफर आख़री है
ये कागज, ये कलम, ये गजल आख़री है
-बदरूल अहमद... ✍️
ये कागज, ये कलम, ये गजल आख़री है .........
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत सुंदर रचना....अप्रतिम
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