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शनिवार, 11 नवंबर 2017

दीपक ख़ुशी के जलाऊँ ...........नीतू ठाकुर

कैसे दीपक ख़ुशी के जलाऊँ पिया,
बिन तेरे आज खुशियाँ मनाऊँ पिया,
सोलह शृंगार से तन सजा तो लिया ,
संग तुम ले गये हो हमारा जिया,
बनके दीपक मै जलती रही रात भर,
एक पल भी हटी ना हमारी नजर,
इस तरह घिर के आई थी काली घटा ,
ऐसा लगता था जैसे ना होगी सहर

कैसे दीपक ख़ुशी के जलाऊँ पिया,
बिन तेरे आज खुशियाँ मनाऊँ पिया...

प्रीत की रीत हमने निभाई मगर,
क्यों ना बन पाई प्रीतम तेरी हमसफ़र,
राह तकते हुए प्राण त्यागेगा तन,
फिर भी होगी ना तुमको हमारी खबर

कैसे दीपक ख़ुशी के जलाऊँ पिया,
बिन तेरे आज खुशियाँ मनाऊँ पिया...

सज गई हर गली सज गया है शहर,
फिर भी खुशियों का होता नहीं क्यों असर,
आस मिलने की लेकर मै निकली मगर,
ये ना जानू की क्या होगा मेरा हशर,
कैसे दीपक ख़ुशी के जलाऊँ पिया,
बिन तेरे आज खुशियाँ मनाऊँ पिया...
- नीतू ठाकुर

4 टिप्‍पणियां:

  1. प्रीत की रीत हमने निभाई मगर,
    क्यों ना बन पाई प्रीतम तेरी हमसफ़र,
    राह तकते हुये प्राण त्यागेगा तन,
    फिर भी होगी ना तुमको हमारी खबर...

    वेदना को विलक्षणता प्रदान करती सुंदर पंक्तियाँ... लिखते रहिए आदरणीय नीतू जी और दीदी का आशीष पाते रहें।।।

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  2. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

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  3. बहुत बहुत सुंदर मनोभाव उकेरे है नीतू जी आपकी लेखनी ने।👌👌

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