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शनिवार, 28 अक्टूबर 2017

सदियों से इन्सान यह सुनता आया है / साहिर लुधियानवी




सदियों से इन्सान यह सुनता आया है
दुख की धूप के आगे सुख का साया है

हम को इन सस्ती ख़ुशियों का लोभ न दो
हम ने सोच समझ कर ग़म अपनाया है

झूठ तो कातिल ठहरा उसका क्या रोना
सच ने भी इन्सां का ख़ून बहाया है

पैदाइश के दिन से मौत की ज़द में हैं
इस मक़तल में कौन हमें ले आया है

अव्वल-अव्वल जिस दिल ने बरबाद किया
आख़िर-आख़िर वो दिल ही काम आया है

उतने दिन अहसान किया दीवानों पर
जितने दिन लोगों ने साथ निभाया है


5 टिप्‍पणियां:

  1. बेहद सुंदर रचना खूबसूरत अंदाज

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत बढ़िया.....
    उम्दा ग़ज़ल......
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  3. बहुत बढ़िया.....
    उम्दा ग़ज़ल......
    सादर...

    जवाब देंहटाएं
  4. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (30-10-2017) को
    "दिया और बाती" (चर्चा अंक 2773)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'


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