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शनिवार, 30 सितंबर 2017

छुपाकर गुलाब रखता है....श्वेता सिन्हा

टूटकर भी वही जलवा ए शबाब रखता है
दिल धड़कनो में छुपाकर गुलाब रखता है

खत्म नही होगा इनके सवालो का सिलसिला
वक्त पे छोड़ दो वही वाजिब हिसाब रखता है

फडफड़ाते है जब भी तेरे यादों के हसीन पन्ने
लफ्ज़ बोलते है जेहन कोई किताब रखता है

गिनकर रखना पड़ता है तेरी बेरूखी के लम्हे
किस पल माँग बैठे वो बेहतर हिसाब रखता है

इतनी बार बिखरा फिर भी सजाना नही छोड़ता
रात का बहाना करके आँख नये ख्वाब रखता है

         #श्वेता🍁

9 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 01 अक्टूबर 2017 को लिंक की गई है.................. http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

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  2. वाह !
    बहुत ख़ूब !
    सुन्दर।
    गूढ़ अर्थों को समेटे हक़ीक़त बयां करती उत्कृष्ट रचना।
    बधाई एवं शुभकामनाऐं।

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (02-010-2017) को
    "अनुबन्धों का प्यार" (चर्चा अंक 2745)
    पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  4. टूटकर भी वही जलवा ए शबाब रखता है
    दिल धड़कनो में छुपाकर गुलाब रखता है।

    Wahhhhhh। श्वेता जी सारे के सारे मिसरे बहुत ख़ूबसूरत लेकिन मतला तो बेमिसाल है। आपकी कलम को नमन

    जवाब देंहटाएं

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