फ़ॉलोअर

रविवार, 25 फ़रवरी 2018

मर-मर के जीने वाले.........डॉ. अमिताभ विक्रम द्विवेदी

मर-मर के जीने वाले क्या जाने क़ज़ा क्या है,
सुरुर के दीवाने ना जाने खुमारी का मज़ा क्या है।

मेरे ही घर में करता है मुझे मारने की साज़िश,
जब मिलता है पूछता है कि तुझे फ़िक्र क्या है।

ईंट मिट्टी की इमारत को लोगों ने बनाया घर,
उसी को बाँट कर पूछते हैं कि तू कौन क्या है।

ज़िन्दगी जीने का सलीका उसे ना आ सका,
मरने पे पूँछता है मेरी मौत की वजह क्या है।

आदमी को आदमी की गंध सुहाती नहीं,
दीवारों से पूछता है वीराने की वजह क्या है।

- डॉ. अमिताभ विक्रम द्विवेदी

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-02-2018) को ) "धारण त्रिशूल कर दुर्गा बन" (चर्चा अंक-2893) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी


    आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-02-2018) को <a
    href="http://charchamanch

    जवाब देंहटाएं
  2. वाह

    एक एक शेर बेहद उम्दा है।

    जवाब देंहटाएं

14...बेताल पच्चीसी....चोर क्यों रोया

चोर क्यों रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?” अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक सा...