फ़ॉलोअर

शुक्रवार, 15 दिसंबर 2017

आप ईमान ढूंढते हो....कुसुम कोठारी

ये क्या कि पत्थरों के शहर में 
शीशे का आशियाना ढूंढते हो!

आदमियत का पता तक नही
गजब करते हो इंसान ढूंढते हो !


यहाँ पता नही किसी नियत का
ये क्या कि आप ईमान ढूंढते हो !

आईनों मे भी दगा भर गया यहां 
अब क्या सही पहचान ढूंढते हो !

घरौदें रेत के बिखरने ही तो थे
तूफानों पर क्यूं इल्जाम ढूंढते हो !

जहां बालपन भी बुड्ढा हो गया 
वहां मासुमियत की पनाह ढूढते हो!

भगवान अब महलों मे सज के रह गये 
क्यों गलियों मे उन्हें सरे आम ढूंढते हो। 
- कुसुम कोठारी

13 टिप्‍पणियां:

  1. उत्तर
    1. जी बहुत बहुत शुक्रिया हौसला अफजाई के लिये।
      सुप्रभात।

      हटाएं
  2. सुंदर रचना.
    पत्थरों के शहर में पत्थर दिल ही मिलते हैं आदमियत विरलों में ही होती है.
    https://sudhaa1075.blogspot.in/2017/12/blog-post_12.html?m=1

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. वाह रचना के समर्थन मे प्रतिक्रिया मन लुभाती सी
      सादर आभार।
      सुप्रभात।

      हटाएं
  3. इस टिप्पणी को लेखक द्वारा हटा दिया गया है.

    जवाब देंहटाएं
  4. वाह्ह्ह..दी हमेशा की तरह सारगर्भित, बेहद उम्दा संदेश देती आपकी नायाब रचना। मेरी बधाई स्वीकार करें।

    आपकी रचना के सम्मान में मेरी चंद पंक्तियाँ दी-

    खो गयी है ज़िदगी की मायूसियों मे कहीं जो
    खिलखिलाते बचपने में वो मुस्कान ढूँढ़ते है

    लोगों की नज़रों मे अजनबीपन देखा है जबसे
    लेकर आईना मन का अपनी पहचान ढूँढ़ते है

    रेत का घरौंदा समन्दर किनारे बना तो लिया है
    अब गुनगुनी हवाओं में भी हम तूफान ढूँढ़ते है

    दौड़ मे ज़िदगी की इंसानियत मिलना मुश्किल है
    इसलिए इंसान शायद पत्थर मे भगवान ढूँढते है

    #श्वेता🍁

    

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. श्वेता आपकी प्रतिपंक्तियां सदा अपने आप मे एक पूर्ण रचना होती है अतिसुन्दर कुछ नये भावों के साथ रचना के समानांतर अतिसुन्दर रचना।
      स्नेह आभार।
      इस क्षेत्र मे नई हूं कुछ अतिक्रमण हो तो पथ प्रदर्शन करें।

      हटाएं
  5. जी सादर आभार हौसला बढाने के लिये और रचना को पसंद करने के लिये।
    सुप्रभात।

    जवाब देंहटाएं
  6. सुप्रभात....बहुत सुंदर

    बदनाम इस जहाँ में ईमान ढूंढ़ता है
    मुडदों के बीच अपनी पहचान ढूंढ़ता है
    तू लौट जा परिंदे कितना तू नासमझ है
    इन पत्थरों में अपना भगवान ढूंढ़ता है

    जवाब देंहटाएं
  7. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (17-12-2017) को
    "लाचार हुआ सारा समाज" (चर्चा अंक-2820)

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं

14...बेताल पच्चीसी....चोर क्यों रोया

चोर क्यों रोया और फिर क्यों हँसते-हँसते मर गया?” अयोध्या नगरी में वीरकेतु नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में रत्नदत्त नाम का एक सा...