हार जाती हूँ , टूट जाती हूँ,
रूठ जाती हूँ खुद से,
जब समझ नहीं आता,
किस्मत क्या चाहती है मुझसे,
मिटती है उम्मीदे,
टूटते है सपने,
पराये से लगते है
सब लोग अपने,
गिरती हूँ ,संभालती हूँ,
घुटती हूँ हर पल,
फिर भी मन कहता है,
अभी थोड़ा और चल,
कशमकश में गुजरी है
मेरी सारी ज़िंदगी,
क्यों करूँ भला मै
किसी और की बंदगी,
क्यों हो मेरे जीवन पर
किसी और का अधिकार,
हो नहीं सकता मुझे
दासत्व स्वीकार,
क्यों मै कतरू पंख अपने,
बांध लूँ मै बेड़ियाँ,
क्यों रहे खामोश ये लब,
मंजिलों से दूरियाँ ,
क्यों फसूं मै बेवजह ही,
रीतियों के जाल में,
जब मेरे अपने ही मुझको,
ला रहे इस हाल में,
कर लूँ आज मुक्त मन को,
इस जहाँ के बंधनो से,
जब नहीं होता है आहत,
कोई मन के क्रंदनों से ,
-नीतू रजनीश ठाकुर
बहुत सुंदर रचना नीतू जी।
जवाब देंहटाएंमन बंधन से आजा़दी चाहता है,मन को भी चाहिए अपना उन्मुक्त नभ।
मेरी रचना पसंद करने के लिए आप का बहोत बहोत आभार
हटाएंसुन्दर
जवाब देंहटाएंमेरी रचना पसंद करने के लिए आप का बहोत बहोत आभार
हटाएंकर लूँ आज मुक्त मन को,
जवाब देंहटाएंइस जहाँ के बंधनो से,
जब नहीं होता है आहत,
कोई मन के क्रंदनों से...
उत्साह प्रवाहित करती आदरणीय नीतू जी की श्रेष्ठ्र रचनाओं में से एक । बधाई रचनाकार एवं चयनकर्ता दोनो को।
मेरी रचना पसंद करने के लिए आप का बहोत बहोत आभार
हटाएंबहुत सारा आभार
जवाब देंहटाएंआदरणीया नीतू जी आपके सृजन में आत्मा विद्यमान है जो वाचक की संवेदना से संवाद करती है। बहुत सुंदर। आपकी रचना को पढ़कर मुझे अपनी रचना "मैं वर्तमान की बेटी हूँ" स्मरण हो आयी। पेश है उस रचना का एक अंश -
जवाब देंहटाएंलज्जा, मर्यादा ,संस्कार की बेड़ियाँ ,
बंधन -भाव की नाज़ुक कड़ियाँ,
अब तोड़ दूँगी मैं ,
बहती धारा मोड़ दूँगी मैं ,
मूल्यों की नई इबारत रच डालूँगी मैं ,
माँ के चरणों में आकाश झुका दूँगी ,
पिता का सर फ़ख़्र से ऊँचा उठा दूँगी,
मुझे जीने दो संसार में,
अपनों के प्यार -दुलार में ,
मैं बेटी हूँ वर्तमान की !
मैं बेटी हूँ हिंदुस्तान की !!
मेरी रचना पसंद करने के लिए आप का बहोत बहोत आभार
हटाएंबहुत सुन्दर भावों से सजी रचना नीतू जी
जवाब देंहटाएंबहुत सारा आभार
हटाएंबहुत सुंदर रचना..
जवाब देंहटाएंबहुत सारा आभार
हटाएंबहुत सारा आभार
जवाब देंहटाएंबहुत सारा आभार
जवाब देंहटाएंसुदर कविता है
जवाब देंहटाएंhttps://kndaliya.blogspot.in
जवाब देंहटाएंthe new morning name blog hai mera ek baar jarror comment karna
Neetu ji bahut sundar kavita hai aapki