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गुरुवार, 16 नवंबर 2017

बेपर्दा नज़र आईं जो चन्द बीवियाँ....अकबर इलाहाबादी

अकबर इलाहाबादी
16 नवम्बर 1846 - 15 फरवरी 1921

आज  श़ायर ज़नाब अकबर इलाहाबादी का जन्म दिन है
आज प्रस्तुत हैं उनकी दो रचनाएँ....

कोई हँस रहा है कोई रो रहा है
कोई पा रहा है कोई खो रहा है

कोई ताक में है किसी को है गफ़लत
कोई जागता है कोई सो रहा है

कहीँ नाउम्मीदी ने बिजली गिराई
कोई बीज उम्मीद के बो रहा है

इसी सोच में मैं तो रहता हूँ 'अकबर'
यह क्या हो रहा है यह क्यों हो रहा है
....................
दूसरी रचना हास्यरस में है
पुरानी रोशनी में और नई में फ़र्क़ है इतना
उसे कश्ती नहीं मिलती इसे साहिल नहीं मिलता

दिल में अब नूरे-ख़ुदा के दिन गए
हड्डियों में फॉसफ़ोरस देखिए 

मेरी नसीहतों को सुन कर वो शोख़ बोला-
"नेटिव की क्या सनद है साहब कहे तो मानूँ"

नूरे इस्लाम ने समझा था मुनासिब पर्दा
शमा -ए -ख़ामोश को फ़ानूस की हाजत क्या है

बेपर्दा नज़र आईं जो चन्द बीवियाँ
‘अकबर’ ज़मीं में ग़ैरते क़ौमी से गड़ गया
पूछा जो उनसे -‘आपका पर्दा कहाँ गया?’
कहने लगीं कि अक़्ल पे मर्दों की पड़ गया.


हम आभारी हैँ..
 रचनाएँ व जानकारी कविता कोश से 

4 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" शुक्रवार 17 नवम्बर 2017 को साझा की गई है..................http://halchalwith5links.blogspot.com पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!

    जवाब देंहटाएं
  2. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा आज शुक्रवार (17-11-2017) को
    "मुस्कुराती हुई ज़िन्दगी" (चर्चा अंक 2790"

    पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
  3. भवोंसे भरी यह सूंदर प्रस्तुति बेहद शानदार है,

    जवाब देंहटाएं
  4. बेपर्दा नज़र आईं जो चन्द बीवियाँ
    ‘अकबर’ ज़मीं में ग़ैरते क़ौमी से गड़ गया
    पूछा जो उनसे -‘आपका पर्दा कहाँ गया?’
    कहने लगीं कि अक़्ल पे मर्दों की पड़ गया

    बेहतरीन रचना ।

    जवाब देंहटाएं

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