सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
अभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं
तही ज़िन्दगी से नहीं ये फ़ज़ायें
यहाँ सैकड़ों कारवाँ और भी हैं
कना'अत न कर आलम-ए-रन्ग-ओ-बु पर
चमन और भी, आशियाँ और भी हैं
अगर खो गया एक नशेमन तो क्या ग़म
मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुगाँ और भी हैं
तू शहीं है पर्वाज़ है काम तेरा
तेरे सामने आस्माँ और भी हैं
इसी रोज़-ओ-शब में उलझ कर न रह जा
के तेरे ज़मीन-ओ-मकाँ और भी हैं
गए दिन की तन्हा था मैं अंजुमन में
यहाँ अब मेरे राज़दाँ और भी हैं
मायने:
तही : तनहा/खाली, फ़ज़ायें : माहौल/मौसम,
कना'अत : खुश होना/सतुष्ट होना ,
आलम-ए-रन्ग-ओ-बु : खुशबु और रंग का जहां,
नशेमन : घौसला, मक़ामात-ए-आह-ओ-फ़ुगाँ : रोने या शांत होने की एक जगह,
ज़मीन-ओ-मकाँ : समय के रास्ते
Bahot sunder rachna aur shandar prastuti
जवाब देंहटाएं"सितारों से आगे जहाँ और भी हैं
जवाब देंहटाएंअभी इश्क़ के इम्तिहाँ और भी हैं"
अल्लामा इक़बाल साहब का यह शेर शायरी प्रिय हरेक शख़्स की ज़बां पर होता है। अति सुन्दर प्रस्तुति। आदरणीया दिव्या जी साधुवाद।
बहुत सुन्दर।
जवाब देंहटाएंआभार दिबू
जवाब देंहटाएंअच्छी रचना पढ़वाई
सादर
अल्लामा इक़बाल की रचनाओं के साथ कठिन उर्दू-फ़ारसी शब्दों की व्याख्या हो तो उनको समझने में आसानी होती है. दिव्या जी इस सार्थक प्रयास के लिए बधाई की पात्र हैं.
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