जब मन में हो मौज बहारों की
चमकाएँ चमक सितारों की,
जब ख़ुशियों के शुभ घेरे हों
तन्हाई में भी मेले हों,
आनंद की आभा होती है
उस रोज़ 'दिवाली' होती है ।
जब प्रेम के दीपक जलते हों
सपने जब सच में बदलते हों,
मन में हो मधुरता भावों की
जब लहके फ़सलें चावों की,
उत्साह की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।
जब प्रेम से मीत बुलाते हों
दुश्मन भी गले लगाते हों,
जब कहींं किसी से वैर न हो
सब अपने हों, कोई ग़ैर न हो,
अपनत्व की आभा होती है
उस रोज़ दिवाली होती है ।
जब तन-मन-जीवन सज जाएं
सद्-भाव के बाजे बज जाएं,
महकाए ख़ुशबू ख़ुशियों की
मुस्काएं चंदनिया सुधियों की,
तृप्ति की आभा होती है
उस रोज़ 'दिवाली' होती है .।
-अटलबिहारी वाजपेयी
दीप पर्व की मंगलकामनाएं।
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (20-10-2017) को
जवाब देंहटाएं"दीवाली पर देवता, रहते सदा समीप" (चर्चा अंक 2763)
पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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दीपावली से जुड़े पंच पर्वों की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुंदर,,
जवाब देंहटाएंशुभ दीपोत्सव!!
जवाब देंहटाएंमाननीय अटल जी अद्भुत कवी है उनकी तारीफ हम क्या करें पर उनकी कविता हमें नव प्रेरणा देने वाली है, फटाके,दीप, मिठाई से हटकर उनकी सोच कल्पनाओं को एक नई दिशा देने वाली है.
जवाब देंहटाएंसादर नमन माननीय अटल जी को....
जवाब देंहटाएंसादर नमन उनकी लेखनी को .....