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गुरुवार, 28 सितंबर 2017

कलियों का मुस्कुराना....अज्ञात


आता है याद मुझको गुज़रा हुआ ज़माना;
वो बाग़ की बहारें, वो सब का चह-चहाना;

आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की;
अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना;

लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम;
शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना;

वो प्यारी-प्यारी सूरत, वो कामिनी-सी मूरत;
आबाद जिस के दम से था मेरा आशियाना।
-श़ायर अज्ञात

3 टिप्‍पणियां:

  1. आज़ादियाँ कहाँ वो, अब अपने घोसले की;
    अपनी ख़ुशी से आना अपनी ख़ुशी से जाना;

    लगती हो चोट दिल पर, आता है याद जिस दम;
    शबनम के आँसुओं पर कलियों का मुस्कुराना;

    Wahhhh। ज़ेहन में अपनी ख़ूबसूरती दर्ज करती शानदार ग़ज़ल। ख़ूबसूरत प्रस्तुति

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