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सोमवार, 5 फ़रवरी 2018

वंदना.....कंचन अपराजिता

मन कोमल दो
विचार निर्मल दो
गीता के सार को
हे माँ! जीवन मे भर दो।

अपनी भक्ति दो
आत्मशक्ति दो
कर्तव्यनिष्ठा के राग को
जीवन का अंग कर दो

दया, ममता व करुणा
मुझ में रहे भरी
मेरी कलमों के स्याही को
अपने प्रेरणा से रंग दो

सरलता सादगी व स्नेह
मेरे हिय में बसें
अस्तित्व का एहसास देकर
एहसान मुझ पर कर दो

विद्या और विचार को
बुद्धि व संस्कार को
वाणी व व्यवहार को
मेरे यश के चादर की वितान
हे वीणावादिनी! तुम अनंत कर दो।

-कंचन अपराजिता, 
चेन्नई

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