तेरे पाहुन की मिट्टी हूं...
मुझको जीवन का बोध करा
निश्छल उड़ती अनुमोदन मे
मेरे क्रंदन का बोध मिटा
तेरे पाहुन की मिट्टी हूं..
दो पल की यौवन बेला मे
मुझको छलिया के गीत सुना
तेरा आर्वतन निश्चित है
मैं रंग लगा,तू प्रीत जगा
तेरे पाहुन की मिट्टी हूं..
माना प्रियतम इस व्योम तले
मुझ को तूझ संग, जीना होगा
इस मौन धरा के आंचल मे
जीवन अंकुर ,सीना होगा
तेरे पाहुन की मिट्टी हूं...
तेरे स्पंदन बन्घन से
मुझ को जाना है, मुझ तक
जब प्राण ओज का आवेदन
देता अनभिज्ञ, गौण सा मन
तब पूर्ण शमन कर खुलते है
उस न्यून धरा के, शून्य नयन !!
तेरे पाहुन की मिट्टी हूं....
मुझको जीवन का बोध करा !
- मुक्ता मिश्रा
यहाँ पाहुन अर्थात
(अतिथि /कल्पना विचार जो बिना संदेस के आते है)
और मिट्टी (उपकल्पना) है
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें