छुवन तुम्हारे शब्दों की
उठती गिरती लहरें मेरे मन की
ऋतुएँ हो पुलकित या उदास
साक्षी बन खड़ा है मेरे आँगन का ये अमलतास
गुच्छे बीते लम्हों की
तुम और मैं धार समय की
डाली पर लटकते झूमर पीले-पीले
धूप में ठंडी छाया नहीं मुरझाया मेरे आँगन का अमलतास
सावन मेरे नैनों का
फाल्गुन तुम्हारे रंगत का
हैं साथ अब भी भीगे चटकीले पल
स्नेह भर आँखों में फिर मुस्काया मेरे आँगन का अमलतास
-श्वेता मिश्र
बहुत ही सुन्दर रचना
जवाब देंहटाएंहार्दिक आभार आपका ...सादर
हटाएंबहुत सुन्दर श्वेता जी! ऐसी ही एक सुन्दर कविता और छाया-चित्र गुलमोहर पर भी हो जाए.
जवाब देंहटाएंसर ...गुलमोहर पर भी एक कविता लिखी है ...और कई जगह भी प्रकाशित हुई है ...हार्दिक आभार उत्साहवर्धन के लिए ....सादर
हटाएंबहुत खूब
जवाब देंहटाएंबेहतरीन !
बहुत बहुत आभार आपका ..सादर
हटाएंअमलतास के लटकती लट जब झूमती है ... तो सावन और ठिठुरते पल एक साथ जीवन में उतर आते हैं ...
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर रचा है प्रकृति के इन रंगों को ...
सर ...तपिश में सुखद अहसास है अमलतास ...प्रकृति सातो रंग समेटे हुए हैं ...सुखद अहसास की छावं !! बहुत बहुत आभार ....सादर
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल बुधवार (26-12-2018) को "यीशु, अटल जी एंड मालवीय जी" (चर्चा अंक-3197) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत मनभावन शब्द चित्र।
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ...सादर
हटाएंअहसासों को प्रकृति के साथ बड़ी ही खुबसूरती से पिरोया है आपने श्वेता जी
जवाब देंहटाएंउत्साहवर्धन के लिए तहे दिल से शुक्रिया... काभर ...सादर
हटाएंबहुत सुंदर,वाह
जवाब देंहटाएंआभार वसु ...
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