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शुक्रवार, 17 अगस्त 2018

'मौत से ठन गई'... ..अटल बिहारी वाजपेयी

'मौत से ठन गई'... 
ठन गई! 
मौत से ठन गई! 

जूझने का मेरा इरादा न था, 
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था, 

रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई, 
यूं लगा जिंदगी से बड़ी हो गई.


मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं, 
जिंदगी सिलसिला, आज कल की नहीं. 

मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूं, 
लौटकर आऊंगा, कूच से क्यों डरूं?

तू दबे पांव, चोरी-छिपे से न आ, 
सामने वार कर फिर मुझे आजमा.
मौत से बेखबर, जिंदगी का सफ़र, 
शाम हर सुरमई, रात बंसी का स्वर. 

बात ऐसी नहीं कि कोई ग़म ही नहीं, 
दर्द अपने-पराए कुछ कम भी नहीं। 

प्यार इतना परायों से मुझको मिला, 
न अपनों से बाक़ी हैं कोई गिला. 

हर चुनौती से दो हाथ मैंने किए, 
आंधियों में जलाए हैं बुझते दिए. 

आज झकझोरता तेज़ तूफ़ान है, 
नाव भंवरों की बांहों में मेहमान है. 

पार पाने का क़ायम मगर हौसला, 
देख तेवर तूफ़ां का, तेवरी तन गई.
- भारत रत्न अटल बिहारी वाजपेयी , भार
पूर्व प्रधानमंत्री 

5 टिप्‍पणियां:

  1. भावपूर्ण श्रद्धांजलि 🙏🌼🙏

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  2. कोटिशः नमन श्रद्धा सुमन अर्पित

    जवाब देंहटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (18-08-2018) को "उजड़ गया है नीड़" श्रद्धांजलि अटलबिहारी वाजपेई (चर्चा अंक-3067) (चर्चा अंक-2968) पर भी होगी।
    --
    सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट अक्सर नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    भारतरत्न अटल बिहारी वाजपेई जी को नमन और श्रद्धांजलि।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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