नहीं मालूम कौन ले गया
रोटी को और सपनों को
सिरहाने की नींद को
और तन के ठौर को
राह दिखाते ध्रुव तारे को
और दिन के उजाले को
मन की छाँव को
और अपनों के गाँव को
धधकती धरती और दहकता सूरज
बौखलाई नदी और चीखता मौसम
बाट जोह रहा है
मेरे पिघलने का
मेरे बिखरने का
मैं ढहूँ तो एक बात हो
मैं मिटूँ तो कोई बात हो!
-डॉ. जेन्नी शबनम
वाह ! बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंजय मां हाटेशवरी....
जवाब देंहटाएंहर्ष हो रहा है....आप को ये सूचित करते हुए.....
दिनांक 020/02/2018 को.....
आप की रचना का लिंक होगा.....
पांच लिंकों का आनंद
पर......
आप भी यहां सादर आमंत्रित है.....
बहुत खूबसूरत
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (20-02-2017) को "सेमल ने ऋतुराज सजाया" (चर्चा अंक-2886) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
बहुत सुन्दर ....
जवाब देंहटाएंबढ़िया !
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूब ।
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