मर-मर के जीने वाले क्या जाने क़ज़ा क्या है,
सुरुर के दीवाने ना जाने खुमारी का मज़ा क्या है।
मेरे ही घर में करता है मुझे मारने की साज़िश,
जब मिलता है पूछता है कि तुझे फ़िक्र क्या है।
ईंट मिट्टी की इमारत को लोगों ने बनाया घर,
उसी को बाँट कर पूछते हैं कि तू कौन क्या है।
ज़िन्दगी जीने का सलीका उसे ना आ सका,
मरने पे पूँछता है मेरी मौत की वजह क्या है।
आदमी को आदमी की गंध सुहाती नहीं,
दीवारों से पूछता है वीराने की वजह क्या है।
- डॉ. अमिताभ विक्रम द्विवेदी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (26-02-2018) को ) "धारण त्रिशूल कर दुर्गा बन" (चर्चा अंक-2893) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (19-02-2018) को <a
href="http://charchamanch
वाह
जवाब देंहटाएंएक एक शेर बेहद उम्दा है।