बहारों का आया है मौसम सुहाना
नये साज़ पर कोई छेड़ो तराना।
ये कलियाँ, ये गुंचे ये रंग और ख़ुशबू
सदा ही महकता रहे आशियाना।
हवा का तरन्नुम बिखेरे है जादू
कोई गीत तुम भी सुनाओ पुराना।
चलो दोस्ती की नई रस्म डालें
हमें याद रखेगा सदियों जमाना।
खुशी बाँटने से बढ़ेगी ज़ियादा
नफ़े का है सौदा इसे मत गँवाना।
मैं देवी ख़ुदा से दुआ माँगती हूँ
बचाना, मुझे चश्मे-बद से बचाना।
-देवी नागरानी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (27-01-2018) को "शुभकामनाएँ आज के लिये" (चर्चा अंक-2861) पर भी होगी।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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गणतन्त्र दिवस की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सुन्दर
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