अच्छा लगता है ना, जाड़े में अलाव सेंकना
खुले आसमान के नीचे बैठ सर्दियों से लड़ना
हां कुछ देर गर्माहट का एहसास
तन मन को अच्छा ही लगता है
पर उस अलाव का क्या
जो धधकता रहता हर मौसम
अंदर कहीं गहरे झुलसते रहते जज्बात
बेबसी,बेकसी और भूखे पेट की भट्टी का अलाव
गर्मियों में सूरज सा जलाता अलाव
धधक धधक खदबदाता
बरसात मे सीलन लिये धुंवा धुंवा अलाव
बाहर बरसता सावन, अंदर सुलगता
पतझर मे आशाओं के झरते पत्तों का अलाव
उडा ले जाता कहीं उजडती अमराइयों मे
सर्दी मे सुकून भरा गहरे तक छलता अलाव।
-कुसुम कोठारी
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (14-01-2018) को "मकर संक्रंति " (चर्चा अंक-2848) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हर्षोंल्लास के पर्व लोहड़ी और मकर संक्रान्ति की
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
सादर आभार।
हटाएंअंतर्मन के अलाव में खुद ही धधकना होता है
जवाब देंहटाएंबहुत सही
जी सटीक बात।
हटाएंबहुत सा आभार।
सार्थक रचना
जवाब देंहटाएंजी आपका बहुत सा आभार रचना के अंतर तक पहुंच कर प्रतिक्रिया का।
हटाएं"अलाव" बिषय आधारित रचनाओं का प्रकाशन सोमवार 15 जनवरी 2018 को किया जा रहा है जिसमें आपकी रचना भी सम्मिलित है . आपकी सक्रिय भागीदारी के लिये हम शुक्रगुज़ार हैं. साथ बनाये रखिये.
जवाब देंहटाएंकृपया चर्चा हेतु ब्लॉग "पाँच लिंकों का आनन्द" ( http://halchalwith5links.blogspot.in) अवश्य पर आइयेगा. आप सादर आमंत्रित हैं. सधन्यवाद.
जी सादर आभार मेरी रचना को चुनने के लिये और विस्तृत जानकारी के लिये।
हटाएंअंतर्मन की सुंंदर अभिव्यक्ति ..
जवाब देंहटाएंशुक्रिया पम्मी जी,आपका स्नेह मिला।
हटाएंवाह्ह्ह...दी बहुत सुंदर लिखा आपने
जवाब देंहटाएंजीवन एक अलाव से कम नहीं
शुरु में धीमा जलता
मासूम बचपने सा सुकून देता
फिर तेजी से दहकता है
पूरी जवानी के जोश सा
फिर धीरे धीरे कम हो जाता है
बढ़ते बुढ़ापे की ओर हो जैसे
और अंत में बुझ जाता है
बच जाती है राख़ मुट्टीभर
अनंत सागर में प्रवाहित होने को।
श्वेता आपकी गर्म जोशी वाली सराहना और जीवन अलाव का विस्तृत वर्णन मेरी रचना को स्पष्ट करती।
हटाएंस्नेह आभार।
वाह
जवाब देंहटाएंसादर आभार।
हटाएंआभार नीतू जी।
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