भोजपुरी को सदा अनदेखा किया गया है।
किसानोंकी व्यथा, वहां की नारियों की व्यथा
पर रचनाएँ लिखी जातीं हैं
परन्तु भोजपुरी में बहुत कम पढ़ने में आती है।
आपके समक्ष भोजपुरी में ये रचना प्रस्तुत कर रही हूँ
प्रतिक्रिया की इच्छुक रहूंगी।
मैं तो चिरइया बाबुल तोरे आँगन की,
नान्हीं उमर खुरच खुरच दाना निकालू ,
भुखिया सतावे बापू ,होठवा पे संतोष मुस्काये,
अंगना में टुकुर - टुकुर देखे पाखी-
थाली क चउरा ,मनवा विकल होई जाये,
मिलि बैठी भुखिया मिटवली बापू ,
दाता से पूछी ला एक ही सवलिया
"गरीबन के जिनगी में काहे लिखला-
भूखिया - पियसिया, आँसूवन क धरिया !!
-उर्मिला सिंह
आपकी इस प्रविष्टि् की चर्चा कल रविवार (06-05-2018) को "उच्चारण ही बनेंगे अब वेदों की ऋचाएँ" (चर्चा अंक-2962) (चर्चा अंक-1956) पर भी होगी।
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सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" रविवार 06 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंसुंदर प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंगरीबी पर बहुत रचनाएँ लिखी गयी लेकिन भोजपुरी में पहली बार पढ़ी है.
जवाब देंहटाएंसुंदर
बहुत सुंदर......उम्दा
जवाब देंहटाएंवाह बेहद खूबसूरत बेजोड़ सुंदर सटीक रचना 👌
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