तुमको रूठे इक ज़माना हो गया है,
मुंह दिखाए इक ज़माना हो गया है।
हिज्र पल-पल यूँ सताता हैं कि हमको,
मुस्कुराये इक ज़माना हो गया है।
सोचते हैं इन दिनों हम भी कहें कुछ,
सबकी सुनते इक ज़माना हो गया है।
और कितनी दूर है मंज़िल न जाने,
चलते - चलते इक ज़माना हो गया है।
उंगलियों पर तेरी हमको ऐ ह़यात,
रक़्स करते इक ज़माना हो गया है।
ऐ दिले - वीरां किसी से दोस्ती कर,
तुझको रोए इक ज़माना हो गया है।
मुंतज़िर रुठी हुईं है नींद अज़ल से,
ख़ाब देखे इक ज़माना हो गया है।
- कल्पना सक्सेना
वाह वाह उम्दा कल्पना जी...सबकी सुनते एक जमाना हो गया,
जवाब देंहटाएंरोये एक जमाना हो गया बेहतरीन रचना शुभकामनाएं
बरस जा ऐ बेसुमार बैताबियों के अब्र
जवाब देंहटाएंसागर को रुके आंखों मे जमाना हो गया।
वाह उम्दा बेहतरीन गजल।
वाह लाजवाब .....
जवाब देंहटाएंहम जानते थे एक दिन तड़प जाओगे तुम भी
हमको बिछड़े हुए भी तो जमाना हो
आपकी लिखी रचना "पांच लिंकों का आनन्द में" मंगलवार 08 मई 2018 को साझा की गई है......... http://halchalwith5links.blogspot.in/ पर आप भी आइएगा....धन्यवाद!
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (08-05-2017) को "घर दिलों में बनाओ" " (चर्चा अंक-2964) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
ऐ दिले - वीरां किसी से दोस्ती कर,
जवाब देंहटाएंतुझको रोए इक ज़माना हो गया है।
वाह वाह क्या बात है
एक नई अद्भुत कवियत्री से अवगत करवाने का आभार।
इन्हें ब्लॉग पर लेकर आने का प्रयास करें।