जब कभी उकेर लेती हूँ तुम्हें
अपनी नज़्मों में !
आँसुओं से भीगे
गीले, अधसूखे शब्दों से!!
सूख जायेंगी गर कभी
वे उदास नज़्में!
सबसे पहले सुनाऊँगी
या दिखाऊँगी!!
सच में गीली हैं
अभी तो!
वाकई बहुत भीगी भीगी सी
न जाने कैसे सूखेंगी???
इस गीले मौसम को भी
अभी ही आना था?
-सीमा ‘असीम’ सक्सेना
सूखने के बाद तो दरारें पड़ जाती है।
जवाब देंहटाएंनम भूमि में ही तो उजेंगी नई सोच नई तरकीबें
मानने की
मनाने की।
सुंदर नज्म
सूखने के बाद तो दरारें पड़ जाती है।
जवाब देंहटाएंनम भूमि में ही तो उजेंगी नई सोच नई तरकीबें
मानने की
मनाने की।
सुंदर नज्म