बुधवार, 17 जनवरी 2018

जिंदगी भारी बहुत है...अलका गुप्ता

फूँकने को एक..चिंगारी बहुत है !
मौत से तो..जिंदगी भारी बहुत है !!

सीख अब हमने लिया है सबक यारा..
जिंदगी मीठी कभी खारी बहुत है !!

ऐहसासों में अब...दम कहाँ खुदाई !
आज रुख हर तरफ़..बाजारी बहुत है !!

धुंध हटती क्यूँ नहीं...उस..वेहया से !
खून में..जो...आज...गद्दारी बहुत है !!

सिलसिला मिलने नहीँ देता जभी तो...
गुफ्तगू में एक लाचारी बहुत है !!

आइना तो झूठ बोला ही नहीं था !
उस दिखावे में अदाकारी बहुत है!!

शोखियाँ जर-जर हुईं हैं भारती क्यूँ ?
नोचता अब फ़कत फुलवारी बहुत है !!

-अलका गुप्ता

6 टिप्‍पणियां:

  1. वाह ! लाजवाब !! हर शेर बेहतरीन !! बहुत खूब आदरणीया ।

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  2. आदरणिया अनुजा अलका गुप्ता मै देखता हूँ कि लड़किया अवसाद ग्रस्त होकर ऐसी रचनाये लिखती है ऐक बात तो निश्चित सत्य है कि शब्द आत्मा की आवाज होते है ।। और ऐसे अवसाद भरे शब्दो का क्या परिणाम होता है ? ये आप जैसी श्रेष्ठ कलमकारा को समझाना मतलब सूरज को दीपक दिखाना है ।। इस लिये मेरा कर बद्ध निवेदन है कि अवसाद से कैसे बाहार निकला जाये वैसी प्रेरक रचनाये लिखोगी तो अवसादी लड़कियो को जीने की प्रेरणा मिलेगी हालतो से लड़ने की हिम्मत मिलेगी उनको मार्गदर्शन मिलेगा इसी आशा और विश्वास मे प्रतिक्षारत मै कवि भयंकर

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  3. नमस्ते,
    आपकी यह प्रस्तुति BLOG "पाँच लिंकों का आनंद"
    ( http://halchalwith5links.blogspot.in ) में
    गुरूवार 18-01-2018 को प्रकाशनार्थ 916 वें अंक में सम्मिलित की गयी है।
    प्रातः 4 बजे के उपरान्त प्रकाशित अंक अवलोकनार्थ उपलब्ध होगा।
    चर्चा में शामिल होने के लिए आप सादर आमंत्रित हैं, आइयेगा ज़रूर।
    सधन्यवाद।

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  4. वाह उम्दा बेहतरीन हर शेर अपने आप मे मुकम्मल। खूबसूरत।

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  5. सभी शेर बहुत ही उमदा तीखे और लजावब ...

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  6. ख़ूबसूरत ग़ज़ल अलका जी, किन्तु अभी आपकी रचना में परिपक्वता की कमी है. 'एहसासों में अब --दम कहाँ ख़ुदाई !' बहुत कमज़ोर पंक्ति है.

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