इक तरफ गुंजान बस्ती इक तरफ सुनसान बन
देखिए जब तक जहाँ लग जाय दीवाने का मन
जो न तुझको जानता हो जा के धोखा उसको दे
मैं तुझे पहचानता हूँ , जिन्दगी मुझसे न बन
चंद आँसू , काँटे, चंद कलियाँ, चंद फूल
हों सलीके से जहाँ मौजूद, वो भी इक चमन
देर तक उठता धुआँ, उठ उठ के सर धुनता रहा
सब के सब चौंके अँधेरी हो चुकी जब अंजुमन
तुम जिसे समझे हो बालों की सफेदी मेरे यार
मैं समझता हूँ उसे अपनी जवानी का कफन
-काशी नाथ त्रिपाठी
प्रस्तुतिः नीतू ठाकुर,
वाहवाह.....!!!!
जवाब देंहटाएंबहुत लाजवाब....
तुम जिसे समझे हो बालों की सफेदी मेरे यार
मैं समझता हूँ उसे अपनी जवानी का कफन
लाजवाब
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना अंतिम शेर बेमिसाल उम्रके चढाव का उतार है ये सिर्फ बालों की सफेदी नही वाह!!
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