जंगली एक फूल
ताउम्र ये कहता रहा
आँख से आँसू का झरना
हर घडी बहता रहा
काश मै गुलाब होता
तो कितना लाजवाब होता
किसी के ख्वाबों में आता
किसी की जुल्फें सजाता
हर कोई मुझे देख कर मुस्कुराता
कोई हसीन लब मुझे चूम जाता
काश मै गुलाब होता......
कोई पन्नों में छुपाता
कोई दिल में बसाता
एक कोने में लावारिस सा
तन्हा तन्हा न रह जाता
काश मै गुलाब होता.......
भगवान के मस्तक पर सजता
उनके चरणों में बसता
जब निकलते प्राण
तब भी मन हसता
काश मै गुलाब होता......
मुकद्दर ने दे दी
उम्र भर की रुसवाई
मुझ जैसे जंगली की
किसी को याद न आई
न खुशबू न रंगत ही पाई
क़ुदरत ने की क्यों बेवफाई?
काश मै गुलाब होता......
- नीतू ठाकुर
वाह बेहतरीन
जवाब देंहटाएंगुलाब का मानवीकरण करती एक उत्कृष्ट रचना जिसमें में भाषा सम्बन्धी (व्याकरण) मामूली सुधार की गुंज़ाइश है।
जवाब देंहटाएंआदरणीया नीतू जी ऐसी रचनाऐं हमारा मन रंजित कर दिल पर छा जाती हैं। ज़ारी रहे आपका मौलिक सृजन।
बधाई एवं शुभकामनाऐं।
बहुत सुंदर रचना नीतू जी ।बन फूलकी मनो व्यथा।
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