रविवार, 15 जुलाई 2018

"अन्वेषण"......डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

मेघ भी है, आस भी है और आकुल प्यास भी है,
पर बुझा दे जो हृदय की  आग वह पानी कहाँ है ?

स्वाति जल की कामना में,पी कहाँ?'का मंत्र पढ़कर 
बादलो  को जो रुला दे, मीत !वह मानी कहाँ है ?

क्षत-विक्षत है उर धरा का,रस रसातल में समाया,
सत्व सारा जो लुटा दे, अभ्र वह दानी कहाँ है ?

पार नभ के लोक में, जो बादलो पर राज करता,
छल-पराक्रम का धनी वह इंद्र अभिमानी कहाँ है ?

मौन  पादप, वृक्ष नीरव, वायु चंचल, प्राण व्याकुल
इन्द्रधनुषी इस रसा का रंग वह धानी कहाँ है ?

सृष्टि  भीगे, रूप सरसे, जिस सुहृद से नेह बरसे,  
उस पिघलते मेह जैसे वीर का सानी कहाँ है ?  

कुछ  सरस है,  विरस भी, तृप्त कोई, दृप्त कोई 
नियति जल कि थाह लेता जीव अज्ञानी कहाँ है  ?
-डॉ. गोपाल नारायन श्रीवास्तव

8 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (16-07-2018) को "बच्चों का मन होता सच्चा" (चर्चा अंक-3034) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    राधा तिवारी

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  2. बेहतरीन ....लेखन
    जो बुझा दे आग हृदय की वो पानी कहाँ है ....👏👏👏👏👏👏👏👏👏लाजवाब और गहरी पंक्तियाँ

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  3. मेरी पसंद को विविधा मे स्थान देने के लिये तहे दिल से आभार दी, इस रचना की रचनात्मकता शब्दों का गठन और अन्तर निहित भाव और काव्य सौष्ठव मुझे सदा से आकर्षित करते रहे हैं, ये मेरी कुछ पंसदीदा कविताओं मे से एक है और मेरे संकलन का बहुत जूना हिस्सा।
    पुनः सादर आभार।

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  4. वाह्ह...वाह्ह्ह.... लाज़वाब...शानदार रचना...👌👌

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  5. सृष्टि भीगे, रूप सरसे, जिस सुहृद से नेह बरसे,
    उस पिघलते मेह जैसे वीर का सानी कहाँ है ? -- बहुत ही संवेदनशील रचना आदरणीय यशोदा दीदी | कविवर को सादर नमन | सादर आभार पढवाने के लिए |

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  6. बहुत ख़ूब ...
    सुंदर ... अच्छे शेर हैं ...

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