शनिवार, 19 मई 2018

ना पतन की राह निकालो...डॉ. इन्दिरा गुप्ता

विश्वास घात सा कर रहे 
मानव तुम अपने ही साथ 
जनम से लेकर मरण तक 
मैं हरदम देता तेरा साथ ! 

मात नहीं पर मात सरीखा 
नेह सदा करता 
पितृ हस्त की तरह सदा 
सर पर छाया  रखता ! 

भाई  बहन के निश्छल बंधन सा 
अपना अटूट है नाता 
और दोस्त सी वफा बराबर 
पूरे जीवन करता ! 

इतना ही नहीं फल फूल सदा 
तेरे लिये उगाता 
तू खाता हर्षित मेरा मन 
द्विग्णित  भाव उपजता ! 

श्वास श्वास मुझसे स्पंदित 
स्वच्छ वायु मुझसे पाता 
मुझे काट क्या सुख पायेगा  
अपना तो आदि काल से नाता ! 

मत बैठो उस ढहती कगार पर 
ना पतन की राह निकालो 
मेरा क्या मैं काष्ठ निर्जीव 
तुम अपना तो भला विचारों ! 

एक कटे और दस उगे 
फिर पांच से पचास 
पीढ़ी दर पीढ़ी यही सुमारग 
दिखलाओ इंसान ! 

डॉ. इन्दिरा गुप्ता  ✍

5 टिप्‍पणियां:

  1. सार्थक खरी खरी सी बात।
    सुंदर रचना।

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  2. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २१ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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  3. सटीक , सुन्दर , सार्थक रचना...।

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