विश्वास घात सा कर रहे
मानव तुम अपने ही साथ
जनम से लेकर मरण तक
मैं हरदम देता तेरा साथ !
मात नहीं पर मात सरीखा
नेह सदा करता
पितृ हस्त की तरह सदा
सर पर छाया रखता !
भाई बहन के निश्छल बंधन सा
अपना अटूट है नाता
और दोस्त सी वफा बराबर
पूरे जीवन करता !
इतना ही नहीं फल फूल सदा
तेरे लिये उगाता
तू खाता हर्षित मेरा मन
द्विग्णित भाव उपजता !
श्वास श्वास मुझसे स्पंदित
स्वच्छ वायु मुझसे पाता
मुझे काट क्या सुख पायेगा
अपना तो आदि काल से नाता !
मत बैठो उस ढहती कगार पर
ना पतन की राह निकालो
मेरा क्या मैं काष्ठ निर्जीव
तुम अपना तो भला विचारों !
एक कटे और दस उगे
फिर पांच से पचास
पीढ़ी दर पीढ़ी यही सुमारग
दिखलाओ इंसान !
डॉ. इन्दिरा गुप्ता ✍
सार्थक खरी खरी सी बात।
जवाब देंहटाएंसुंदर रचना।
जी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २१ मई २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
अति आभार रूपचन्द्र जी
जवाब देंहटाएंसटीक , सुन्दर , सार्थक रचना...।
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
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