गुरुवार, 10 मई 2018

वफ़ायें तो हुई है अब.......उपेन्द्र परवाज़

वफ़ायें तो हुई है अब जिस्मों का शबाब 
दुनिया के बगीचे में, प्यार हुआ काग़ज़ का गुलाब 

दिल जो टूटा करते थे गुज़रे ज़माने की बातें है 
इस ज़माने में रोज़ इक दिल तोड़ना, भी है ख़िताब।

अब बुझी अंगड़ाइयाँ हैं अब तब्बसुम ही नहीं
रोशनी बल्बों से मिलती, गुम हुए है आफ़ताब।

पाने की जब इतनी परवाह खोने से क्यों डर रहे
ये तो साहब ज़िन्दगी है, ना किसी बनिये का हिसाब। 

रोज़ जो चेहरे बदलते है लिबासों की तरह
दुनिया कहती है की इनका फ़न है, कितना लाजवाब।

आदमी अब आदमी से रोज़ मिलाता है यहाँ
दिल अब शायद किसी से मिले, अब वो ज़माना है ज़नाब।
-उपेन्द्र परवाज़

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