कदम जब रुकने लगे तो
मन की बस आवाज सुन
गर तुझे बनाया विधाता ने
श्रेष्ठ कृति संसार मे तो
कुछ सृजन करने
होंगें तुझ को
विश्व उत्थान में,
बन अभियंता करने होंगें
नव निर्माण
निज दायित्व को पहचान तूं
कैद है गर भोर उजली
हरो तम, बनो सूर्य
अपना तेज पहचानो
विघटन नही,
जोडना है तेरा काम
हीरे को तलाशना हो तो
कोयले से परहेज
भला कैसे करोगे
आत्म ज्ञानी बनो
आत्म केन्द्रित नही
पर अस्तित्व को जानो
अनेकांत का विशाल
मार्ग पहचानो
जियो और जीने दो,
मै ही सत्य हूं ये हठ है
हठ योग से मानवता का
विध्वंस निश्चित है
समता और संयम
दो सुंदर हथियार है
तेरे पास बस उपयोग कर
कदम रूकने से पहले
फिर चल पड़।
- कुसुम कोठारी
Bahut sahi bat kahi di.....Bahut khoob
जवाब देंहटाएंस्नेह आभार प्रियंका जी।
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (21-04-2017) को "बातों में है बात" (चर्चा अंक-2947) (चर्चा अंक-2941) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
--
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी बहुत बहुत आभार आदरणीय मेरी रचना को मान देने के लिये ।
हटाएंअति सुन्दर बात मीता ...मन की आवाज सुन ....
जवाब देंहटाएंआभार मीता।
हटाएंवाह!!! बहुत खूब ... नमन आप की लेखनी को।
जवाब देंहटाएंसत्य का दर्पण दिखाती सुन्दर अभिव्यक्ति
नीतू जी आपका आभार मे शब्दों मे कभी भी व्यक्त नही कर पाऊंगी बस सदा स्नेह बनाये रखें।
हटाएंवाह्ह्ह...दी...लाज़वाब...आपकी अभिव्यक्ति सदा सबसे अलग होती है। वैचारिक संप्रेषण कमाल का है दी...👌👌👌
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत खूबसूरत रचना।
जवाब देंहटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक २३ अप्रैल २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
सुन्दर सीख देती हौसला और हिम्मत रखकरकदम दर कदम आगे बढ़ने की प्रेरणा देती लाजवाब अभिव्यक्ति....
जवाब देंहटाएंवाह!!!
nice lines
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