शाम का ढलता सूरज
उदास किरणें थक कर
पसरती सूनी मुंडेर पर
थमती हलचल धीरे धीरे
नींद केआगोश मे सिमटती
वो सुनहरी चंचल रश्मियां
निस्तेज निस्तब्ध निराकार
सुरमई संध्या का आंचल
तन पर डाले मुह छुपाती
क्षितिज के उस पार अंतर्धान
समय का निर्बाध चलता चक्र
कभी हंसता कभी उदास
ये प्रकृति का दृश्य है या फिर
स्वयं के मन का परिदृश्य
वो ही प्रतिध्वनित करता जो
निज की मनोदशा स्वरूप है
भुवन वही परिलक्षित करता
जो हम स्वयं मन के आगंन मे
सजाते है खुशी या अवसाद
शाम का ढलता सूरज क्या
सचमुच उदास....... ?
कुसुम कोठारी
सादर आभार दी सखी
जवाब देंहटाएंविगत रंगभरा त्योहार रंग से सजा खुशनुमा व्यतीत हुवा होगा। विगत कल से शुरू गणगौर पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
बहुत अच्छी प्रस्तुति
जवाब देंहटाएंआपको जन्मदिन-सह-होली की हार्दिक शुभकामनाएं!
सादर आभार रचना की सराहना का
हटाएंपर मेरा जन्म दिन तो महीनों पहले चला गया फिर भी आपकी शुभ कामनाएं मेरी धरोहर है बहुत सा आभार ।
आपकी होली भी रंगारंग और खुशनुमा रही और रहे सदा।
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-03-2017) को "होली गयी सिधार" (चर्चा अंक-2899) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
जी आदरणीय सादर आभार। मेरी रचना को चुनने के लिए
हटाएंभुवन वही परिलक्षित करता
जवाब देंहटाएंजो हम स्वयं मन के आगंन मे
सजाते है खुशी या अवसाद
शाम का ढलता सूरज क्या
सचमुच उदास....... ? .. Beautiful
सादर आभार।
हटाएंबहुत बढ़िया
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंजी नमस्ते,
जवाब देंहटाएंआपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ५ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।
स्नेह आभार श्वेता ।
हटाएंबहुत ही सुन्दर रचना कुसुम जी !
जवाब देंहटाएंमैंने इसे पहले भी पढ़कर प्रतिक्रिया की थी वह दिखाई नहीं दे रही ????
स्वयं के मन का परिदृश्य ....
लाजवाब...
वाह!!!
बहुत खूबसूरत रचना कुसुम जी !!
जवाब देंहटाएंबहुत, बहुत खुबसूरत रचना दी।
जवाब देंहटाएंस्वयं से ..शाम का ढलता सूरज क्या
सचमुच उदास?
प्रकृति उसी रंग में रंगी नजर आती है हम जिस रंग में रें रंगे होते हैं |हम खुश तो सूरज हंसता दिखता है - हम उदास तो भला सूरज क्यों उदास ना दिखेगा ? सुंदर , सार्थक रचना आदरणीय कुसुम जी
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