शनिवार, 3 मार्च 2018

सुरमई संध्या का आंचल...कुसुम कोठारी

शाम का ढलता सूरज
उदास किरणें थक कर
पसरती सूनी मुंडेर पर
थमती हलचल धीरे धीरे
नींद केआगोश मे सिमटती
वो सुनहरी चंचल रश्मियां
निस्तेज निस्तब्ध निराकार
सुरमई संध्या का आंचल
तन पर डाले मुह छुपाती
क्षितिज के उस पार अंतर्धान
समय का निर्बाध चलता चक्र
कभी हंसता कभी  उदास
ये प्रकृति का दृश्य है या फिर
स्वयं के मन का परिदृश्य
वो ही प्रतिध्वनित करता जो
निज की मनोदशा स्वरूप है
भुवन वही परिलक्षित करता
जो हम स्वयं मन के आगंन मे
सजाते है खुशी या अवसाद
शाम का ढलता सूरज क्या
सचमुच उदास....... ?
कुसुम कोठारी 

15 टिप्‍पणियां:

  1. सादर आभार दी सखी
    विगत रंगभरा त्योहार रंग से सजा खुशनुमा व्यतीत हुवा होगा। विगत कल से शुरू गणगौर पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं

    जवाब देंहटाएं
  2. बहुत अच्छी प्रस्तुति
    आपको जन्मदिन-सह-होली की हार्दिक शुभकामनाएं!

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. सादर आभार रचना की सराहना का
      पर मेरा जन्म दिन तो महीनों पहले चला गया फिर भी आपकी शुभ कामनाएं मेरी धरोहर है बहुत सा आभार ।
      आपकी होली भी रंगारंग और खुशनुमा रही और रहे सदा।

      हटाएं
  3. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (04-03-2017) को "होली गयी सिधार" (चर्चा अंक-2899) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

    जवाब देंहटाएं
    उत्तर
    1. जी आदरणीय सादर आभार। मेरी रचना को चुनने के लिए

      हटाएं
  4. भुवन वही परिलक्षित करता
    जो हम स्वयं मन के आगंन मे
    सजाते है खुशी या अवसाद
    शाम का ढलता सूरज क्या
    सचमुच उदास....... ? .. Beautiful

    जवाब देंहटाएं
  5. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना हमारे सोमवारीय विशेषांक ५ मार्च २०१८ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

    जवाब देंहटाएं
  6. बहुत ही सुन्दर रचना कुसुम जी !
    मैंने इसे पहले भी पढ़कर प्रतिक्रिया की थी वह दिखाई नहीं दे रही ????
    स्वयं के मन का परिदृश्य ....
    लाजवाब...
    वाह!!!

    जवाब देंहटाएं
  7. बहुत खूबसूरत रचना कुसुम जी !!

    जवाब देंहटाएं
  8. बहुत, बहुत खुबसूरत रचना दी।
    स्वयं से ..शाम का ढलता सूरज क्या
    सचमुच उदास?

    जवाब देंहटाएं
  9. प्रकृति उसी रंग में रंगी नजर आती है हम जिस रंग में रें रंगे होते हैं |हम खुश तो सूरज हंसता दिखता है - हम उदास तो भला सूरज क्यों उदास ना दिखेगा ? सुंदर , सार्थक रचना आदरणीय कुसुम जी

    जवाब देंहटाएं