बसंत पंचमी को
माँ सरस्वती का वन्दन
अभिनंदन करते बच्चे आज भी
विद्या के मंदिरों में
पीली सरसों फूली
कोयल कूके अमवा की डाली
पूछती हाल बसंत का
तभी कुनमुनाता नवकोंपल कहता
कहाँ है बसंत की मनोहारी छटा ?
वो उत्सव वो मेले ???
सब देखो हो गए हैं कितने अकेले
मैं भी विरल सा हो गया हूँ
उसकी बातें सुनकर
डाली भी करुण स्वर में बोली
मुझको भी ये सूनापन
बिलकुल नहीँ भाता !!
....
विचलित हो बसंत कहता
मैं तो हर बरस आता हूँ
तुम सबको लुभाने
पर मेरे ठहरने को अब
कोई ठौर नहीं
उत्सव के एक दिन की तरह
मैं भी पंचमी तिथि को
हर बरस आऊंगा
तुम सबके संग
माता सरस्वती के चरणों में
शीष नवाकर
बासंती पर्व कहलाऊंगा !!!!
-'सदा' सीमा सिंघल
बहुत सुंदर कटते वन और वृक्षों का दर्द समेटे हृदय को छूती रचना।
जवाब देंहटाएंबेहतरीन
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार आपका ....
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल बुधवार (24-01-2018) को "महके है दिन रैन" (चर्चा अंक-2858) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
वाह, अतिसुन्दर
जवाब देंहटाएंबसंत पंचमी के आगमन और प्रेम के मनुहार का यह मौसम सुहावना होता है
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर रचना
हार्दिक शुभकामनाएं
सादर