शुक्रवार, 28 जून 2019

बारिश खुली नही है अभी ...निधि सक्सेना

बारिश खुली नही है अभी
अभी तो बंधे पड़े हैं बादल
हवाओं का बहकना बाकी है अभी
अभी सूखा पड़ा है मन..

कुछ ही बूंदे गिरी हैं अभी
कि अभी तो सूरज धुला भी नहीं
कोई सांझ नहाई भी नहीं 
पोखर भरे भी नहीं 
बच्चे भीगे भी नहीं 
रात गुनगुनाई भी नहीं 
झींगुर बोले भी नहीं ..

हाँ आसमान में बादल तो हैं
पर मन की तरह रीते हैं
और धरती का आँचल नयनों की तरह सूना है..
कुँए बुझे पड़े हैं
नदियां धूलधूसरित
ताल बेगाने..

अभी अधूरी है बारिश
अभी अधूरी है ख्वाहिश
इंतज़ार है कि इस बरसात
भीगे तन मन
गलियां वलियाँ
पेड़ पौधे
नदी नाले
तलाब पोखर
झोपड़ी घर
जन जीवन
दिन रात
सुबह सांझ
सूरज चाँद
तारे वारे..
भीगें तुम और मैं
भीगे मन का पोर पोर
कि मखमली बूंदे न थमें न थके

कि कुछ सूखा न रहे
कुछ अधूरा न रहे..
- निधि सक्सेना

10 टिप्‍पणियां:

  1. वाह...शब्दों का बेहद खूबसूरत ताना बाना. 👌👌👌

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  2. क्या बात है निधि जी . बादल अभी बँधे पड़े हैं ...बहुत खूब

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  3. वाह बहुत सुन्दर प्रस्तुति।

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  4. बहुत ही बेहतरीन और प्रभावपूर्ण

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  5. बहुत ही लाजवाब...
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