सोमवार, 1 अप्रैल 2019

ज़िंदगी के रूप.... नरेन्द्र श्रीवास्तव


कहीं  तेज़  तर्रार  ज़िंदगी।
कहीं फूल का हार ज़िंदगी॥

कहीं बर्फ़ -सी ठंडक रखे।
कहीं सुर्ख़ अंगार  ज़िंदगी॥

कहीं माथे की बिंदिया जैसी।
कहीं पायल-झंकार ज़िंदगी॥

कहीं ज्येष्ठ की दुपहरी-सी।
कहीं सावन फुहार ज़िंदगी॥

कहीं ज़िंदगी अँसुअन भींजी।
कहीं लगे ख़ुशगवार ज़िंदगी॥

कहीं पेड़ खजूर-सी लगती।
कहीं कदम की डाल ज़िंदगी॥

कहीं ज़िंदगी बरस सरीखी।
कही लगे दिन चार ज़िंदगी॥

कहीं ज़िंदगी सीधी-सादी।
कहीं लगे श्रृंगार ज़िंदगी।।

कहीं अमावस-सी अँधियारी।
कहीं पूनम उजियार ज़िंदगी।।

कहीं ज़िंदगी भाषण जैसी।
कहीं लगे उद् गार ज़िंदगी॥

कहीं ज़िंदगी खाली डब्बा।
कहीं भरे भंडार ज़िंदगी॥

कहीं ज़िंदगी काली ज़ुल्मी।
कहीं धवल चमकार ज़िंदगी॥

कहीं ज़िंदगी शुष्क, कसैली।
कहीं लगे रसधार ज़िंदगी॥

कहीं ज़िंदगी भिक्षुक जैसी।
कहीं सेठ कलदार ज़िंदगी॥

कहीं ज़िंदगी सूट सफ़ारी।
कहीं लगे फटेहाल ज़िंदगी॥

कहीं  ज़िंदगी  भाग  रही है।
कहीं मद्धिम रफ़्तार ज़िंदगी॥

जाने कितने रूप लिये ये।
अद्भुत है उपहार ज़िंदगी॥

11 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (02-04-2019) को "चेहरे पर लिखा अप्रैल फूल होता है" (चर्चा अंक-3293) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    अन्तर्राष्ट्रीय मूख दिवस की
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब... हट शेर उम्दा ... भरपूर ग़ज़ल ...

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  3. कहीं चुभन है काँटों की तो कहीं फूलों का हार ज़िंदगी !
    बहुत ही बेहतरीन रचना ! अति सुंदर !

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  4. कहीं अमावस-सी अँधियारी।
    कहीं पूनम उजियार ज़िंदगी।।
    बहुत सुंदर अभिव्यक्ति, नीतू दी।

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