मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इश्रत-ए-शबाना
यही ज़िन्दगी मुसीबत यही ज़िन्दगी मुसर्रत
यही ज़िन्दगी हक़ीक़त यही ज़िन्दगी फ़साना
कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक़्र-ए-आशियाना
मेरे कहकहों के ज़द पर कभी गर्दिशें जहाँ की
मेरे आँसूओं की रौ में कभी तल्ख़ी-ए-ज़माना
कभी मैं हूँ तुझसे नाला कभी मुझसे तू परेशाँ
कभी मैं तेरा हदफ़ हूँ कभी तू मेरा निशाना
जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफ़ी
वही तार छेड़ता है मेरा सोज़-ए-शायराना
-मुईन अहसन जज़्बी
वाह जबरदस्त ।
जवाब देंहटाएंवाह बहुत खूब
जवाब देंहटाएंबहुत ख़ूब जज़्बी साहब ! कठिन उर्दू शब्दों के सरल हिंदी में अगर आप अर्थ भी दे दें तो पाठकों को आपकी शायरी समझने में बड़ी सहूलियत हो जाएगी. मेरे पास तो मद्दाह का उर्दू-हिंदी शब्दकोश है पर वह सबके पास नहीं होता.
जवाब देंहटाएंवाह!!!
जवाब देंहटाएंलाजवाब.....