गुरुवार, 3 जनवरी 2019

मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना.....मुईन अहसन जज़्बी


मिले ग़म से अपने फ़ुर्सत तो सुनाऊँ वो फ़साना
कि टपक पड़े नज़र से मय-ए-इश्रत-ए-शबाना

यही ज़िन्दगी मुसीबत यही ज़िन्दगी मुसर्रत
यही ज़िन्दगी हक़ीक़त यही ज़िन्दगी फ़साना

कभी दर्द की तमन्ना कभी कोशिश-ए-मदावा
कभी बिजलियों की ख़्वाहिश कभी फ़िक़्र-ए-आशियाना

मेरे कहकहों के ज़द पर कभी गर्दिशें जहाँ की
मेरे आँसूओं की रौ में कभी तल्ख़ी-ए-ज़माना

कभी मैं हूँ तुझसे नाला कभी मुझसे तू परेशाँ
कभी मैं तेरा हदफ़ हूँ कभी तू मेरा निशाना

जिसे पा सका न ज़ाहिद जिसे छू सका न सूफ़ी
वही तार छेड़ता है मेरा सोज़-ए-शायराना
-मुईन अहसन जज़्बी 

4 टिप्‍पणियां:

  1. बहुत ख़ूब जज़्बी साहब ! कठिन उर्दू शब्दों के सरल हिंदी में अगर आप अर्थ भी दे दें तो पाठकों को आपकी शायरी समझने में बड़ी सहूलियत हो जाएगी. मेरे पास तो मद्दाह का उर्दू-हिंदी शब्दकोश है पर वह सबके पास नहीं होता.

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