जब टूटता है दिल
धोखे फरेब से
अविश्वास और संदेह से
नफरतों के खेल से
तो लहराता है दर्द का समंदर
रह जाते हैं हतप्रभ
अवाक् इंसानों के रूप से
सीधी सरल निष्कपट जिन्दगी
पड़ जाती असमंजस में
बहुरूपियों की दुनिया फिर
रास नहीं आती
उठती हैं अबूझ प्रश्नों की लहरें
आता है ज्वार फिर दिल के समंदर में
भटकता है जीवन
तलाशते किनारा
जीवन की नैया को
नहीं मिलता सहारा
हर ओर यही मंजर है
दिल में चुभता कोई खंजर है
मरती हुई इंसानियत से
दिल जार जार रोता है
ऐसे भी भला कोई
इंसानियत खोता है
जब उठता दर्द का समंदर
हर मंजर याद आता है
डूबती नैया को कहां
साहिल नजर आता है!!!
-अभिलाषा चौहान
वाह बहुत खूब।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद सखी कुसुम जी आभार
हटाएंधन्यवाद 🙏 यशोदा जी , आपने मेरा मार्गदर्शन किया। सादर आभार आप सभी स्नेहीजनों का।
जवाब देंहटाएंधन्यवाद अनुराधा जी
जवाब देंहटाएंकसकती रचना ...👌👌👌👌👌
जवाब देंहटाएंसादर आभार
हटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (29-06-2018) को "हम लेखनी से अपनी मशहूर हो रहे हैं" (चर्चा अंक-3016) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
सूचना देने का उद्देश्य है कि यदि किसी रचनाकार की प्रविष्टि का लिंक किसी स्थान पर लगाया जाये तो उसकी सूचना देना व्यवस्थापक का नैतिक कर्तव्य होता है।
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चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
धन्यवाद आदरणीय, आपका यह कदम मुझे
हटाएंप्रोत्साहित करेगा । अपना आशीर्वाद बनाए रखें🙏🙏
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन टोपी, कबीर, मगहर और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंआपने मेरी रचना को महत्वपूर्ण माना और उसे
हटाएंअन्य बुलेटिनों में शामिल किया, उसके लिए
तहेदिल से सादर धन्यवाद 🙏 🙏 सदा इसी तरह
मार्गदर्शन करते रहे।