खोदता है
जब भी
हृदय की ज़मीन को
दर्द की कुदाल से
तब
फूटता है
एक स्रोत
शब्दों का।
और
स्फुटित होती है
स्वतः
आहों और
वेदना की स्वरलहरों से
कविता
जो करती है माँग
नये इन्क़लाब की
मरता देख
इन्सानियत को
इन मरी आत्मा वाले
ज़िन्दा इन्सानों से।।
-तरूण सोनी "तन्वीर"
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें