शनिवार, 31 मार्च 2018

जिसका जितना आँचल था....मीना कुमारी


टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली 

रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली 

जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली 

मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली 

होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
स्मृतिशेष मीनाकुमारी
1 अगस्त - 31 मार्च

11 टिप्‍पणियां:

  1. शुक्रिया सखी यशोदा जी अति अति आभार
    इतनी लाजवाब नज़्म के लिये 🙏🙏

    जवाब देंहटाएं
  2. उम्दा चयन ,बहुत सुंदर प्रस्तुति।
    मीना कुमारी ...उन्हें शत शत नमन

    जवाब देंहटाएं
  3. मीना जी की बेहतरीन गजल दर्द का तरन्नुम ।

    बहुत उम्दा।

    जवाब देंहटाएं
  4. जय मां हाटेशवरी...
    अनेक रचनाएं पढ़ी...
    पर आप की रचना पसंद आयी...
    हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
    इस लिये आप की रचना...
    दिनांक 03/04/2018 को
    पांच लिंकों का आनंद
    पर लिंक की गयी है...
    इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।

    जवाब देंहटाएं
  5. आपने याद दिला दिया
    साज़े-दर्द छेड़ दिया

    शुक्रिया

    जवाब देंहटाएं
  6. मीना कुमारी की आवाज़ में इस ग़ज़ल को जब हमने सुना था तो दिल में एक उदासी सी छा गयी थी. बहुत ख़ूबसूरत लेकिन दर्द भरी आप-बीती !

    जवाब देंहटाएं