टुकड़े-टुकड़े दिन बीता, धज्जी-धज्जी रात मिली
जिसका जितना आँचल था, उतनी ही सौगात मिली
रिमझिम-रिमझिम बूँदों में, ज़हर भी है और अमृत भी
आँखें हँस दीं दिल रोया, यह अच्छी बरसात मिली
जब चाहा दिल को समझें, हँसने की आवाज़ सुनी
जैसे कोई कहता हो, ले फिर तुझको मात मिली
मातें कैसी घातें क्या, चलते रहना आठ पहर
दिल-सा साथी जब पाया, बेचैनी भी साथ मिली
होंठों तक आते आते, जाने कितने रूप भरे
जलती-बुझती आँखों में, सादा-सी जो बात मिली
स्मृतिशेष मीनाकुमारी
1 अगस्त - 31 मार्च
1 अगस्त - 31 मार्च
शुक्रिया सखी यशोदा जी अति अति आभार
जवाब देंहटाएंइतनी लाजवाब नज़्म के लिये 🙏🙏
ज़ज्बातों का दस्तावेज!!!
जवाब देंहटाएंउम्दा चयन ,बहुत सुंदर प्रस्तुति।
जवाब देंहटाएंमीना कुमारी ...उन्हें शत शत नमन
बहुत सुंंदर नज्म..
जवाब देंहटाएंमीना जी की बेहतरीन गजल दर्द का तरन्नुम ।
जवाब देंहटाएंबहुत उम्दा।
जय मां हाटेशवरी...
जवाब देंहटाएंअनेक रचनाएं पढ़ी...
पर आप की रचना पसंद आयी...
हम चाहते हैं इसे अधिक से अधिक लोग पढ़ें...
इस लिये आप की रचना...
दिनांक 03/04/2018 को
पांच लिंकों का आनंद
पर लिंक की गयी है...
इस प्रस्तुति में आप भी सादर आमंत्रित है।
बेहद उम्दा. सुंदर रचना.
जवाब देंहटाएंलाजवाब गजल..
जवाब देंहटाएंवाह!!बहुत सुंदर ग़ज़ल।
जवाब देंहटाएंआपने याद दिला दिया
जवाब देंहटाएंसाज़े-दर्द छेड़ दिया
शुक्रिया
मीना कुमारी की आवाज़ में इस ग़ज़ल को जब हमने सुना था तो दिल में एक उदासी सी छा गयी थी. बहुत ख़ूबसूरत लेकिन दर्द भरी आप-बीती !
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