26 मार्च 1907-11 सितम्बर 1988
छायावाद की एक प्रमुख स्तम्भ
पद्म विभूषण महादेवी वर्मा
की जयंती के अवसर पर
उन्हें शत शत नमन और श्रद्धाजंलि।
प्रस्तुत है उनकी एक रचना
बनबाला के गीतों सा
निर्जन में बिखरा है मधुमास,
इन कुंजों में खोज रहा है
सूना कोना मन्द बतास।
नीरव नभ के नयनों पर
हिलतीं हैं रजनी की अलकें,
जाने किसका पंथ देखतीं
बिछ्कर फूलों की पलकें।
मधुर चाँदनी धो जाती है
खाली कलियों के प्याले,
बिखरे से हैं तार आज
मेरी वीणा के मतवाले;
पहली सी झंकार नहीं है
और नहीं वह मादक राग,
अतिथि! किन्तु सुनते जाओ
टूटे तारों का करुण विहाग।
अद्भुत अप्रतिम भावों का सौंदर्य जैसे छलकता मधुरस।।
जवाब देंहटाएंशत शत नमन महादेवी जी को
अप्रतिम रचना...
जवाब देंहटाएंमाँ महादवी को नमन...
सादर....
आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल मंगलवार (27-03-2017) को "सरस सुमन भी सूख चले" (चर्चा अंक-2922) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'
नमन
जवाब देंहटाएंआपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन आधुनिक काल की मीराबाई को नमन करती ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
जवाब देंहटाएंनमन
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