गुरुवार, 22 फ़रवरी 2018

आँधियो, तुमने दरख्तों को गिराया होगा.....कैफ भोपाली

कौन आएगा, यहां कोई न आया होगा
मेरा दरवाज़ा हवाओं ने हिलाया होगा

दिल-ए-नादाँ न धड़क ऐ दिल-ए-नादाँ न धड़क
कोई खत ले के पड़ोसी के घर आया होगा

दिल की क़िस्मत ही में लिखा था अँधेरा शायद
वरना मस्जिद का दिया किसने बुझाया होगा

गुल से लिपटी हुई तितली को गिरा कर देखो
आँधियो, तुमने दरख्तों को गिराया होगा

खेलने के लिए बच्चे निकल आये होंगे
चाँद अब उसकी गली में उतर आया होगा

'कैफ' परदेस में मत याद करो अपना मकाँ
अब के बारिश ने उसे तोड़ गिराया होगा
- कैफ भोपाली

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शुक्रवार (23-02-2017) को "त्योहारों की रीत" (चर्चा अंक-2890) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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