शुक्रवार, 2 फ़रवरी 2018

सामने आ ज़रा.....पीताम्बरदास सराफ "रंक"

सामने आ ज़रा
ज़हन पे छा ज़रा॥१॥

झूमने दे मुझे
गीत तो गा ज़रा॥२॥

फूल सा मन खिला
हँस,खिलखिला ज़रा॥३॥

कांच में ज़िन्दगी
जाम टकरा ज़रा॥४॥

आज तो देख ले
नाच नंगा ज़रा॥५॥

छोड़ दी सभ्यता
दूर हट जा ज़रा॥६॥

धरम का ठीकरा
फोड़ तो,आ ज़रा॥७॥

आज पछतायगा
"रंक" थम जा ज़रा॥८॥

-पीताम्बर दास सराफ

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