शनिवार, 10 फ़रवरी 2018

बस देखता रहूंगा....राकेश पत्थरिया 'सागर'


तेज हवाओं में
जब झांकता हूँ खिड़की से उस ओर
तो इन पेड़ों के नृत्य में
तलाशता हूँ कुछ,
उसी समय आसमान में
बहते बादलों में
मिलता है एक अक्स
हू-ब-हू तुम जैसा
आँखें, नाक, कान और बाल।
और वो अक्स
बादलों पर सवार होकर
जा रहा है दूर
बहुत दूर
उसके पीछे भागना मेरे बस में कहां
बस देखता रहूंगा
तब तक जब तक
आँखों से ओझल नहीं हो जाता।

-राकेश पत्थरिया 'सागर'

6 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल रविवार (11-02-2018) को 'रेप प्रूफ पैंटी' (चर्चा अंक-2876) (चर्चा अंक-2875) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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  2. बहुत खूब...बहते बादलों में
    मिलता है एक अक्स...वाह

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