२२ २२ २२ २२
यूँ जब-जब शबनम रोती है
यह देख के शब नम होती है
दुनिया परवाह करेगी क्यों
ज़ख़्मों पर वाह जो होती है
जगमग देखी दुनिया मेरी
जग मग में ख़्वाब डुबोती है
प्रिय तम में छोड़ गया उसको
प्रियतम की ख़ातिर रोती है
मूसा फिर राह दिखाते जब
फिर राहे-मुसाफ़िर होती है
-’गुमनाम’ पिथौरागढ़ी
सुन्दर
जवाब देंहटाएंआपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल सोमवार (22-01-2018) को "आरती उतार लो, आ गया बसन्त है" (चर्चा अंक-2856) पर भी होगी।
जवाब देंहटाएं--
चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
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बसन्तपंचमी की हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
सादर...!
राधा तिवारी
बहुत ही बढ़िया।
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