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शुक्रवार, 23 फ़रवरी 2018

सो गई आके माँ के पल्लू में...मनी यादव

छोड़ दो आसमाँ के पल्लू में
रह नहीं सकता जाँ के पल्लू में

खेलते खेलते थक कर अब धूप
सो गई आके माँ के पल्लू में

धड़कनें आती जाती रहती हैं
इस दिल-ए-मेहरबाँ के पल्लू में

मेरी आवाज़ बेघर थी आख़िर
घर मिला दास्ताँ के पल्लू में

दुश्मनी दोस्ती दोनों रहतीं
एक बस इस ज़ुबाँ के पल्लू में
- मनी यादव

2 टिप्‍पणियां:

  1. आपकी इस प्रविष्टि् के लिंक की चर्चा कल शनिवार (24-02-2017) को "सुबह का अखबार" (चर्चा अंक-2891) पर भी होगी।
    --
    चर्चा मंच पर पूरी पोस्ट नहीं दी जाती है बल्कि आपकी पोस्ट का लिंक या लिंक के साथ पोस्ट का महत्वपूर्ण अंश दिया जाता है।
    जिससे कि पाठक उत्सुकता के साथ आपके ब्लॉग पर आपकी पूरी पोस्ट पढ़ने के लिए जाये।
    --
    हार्दिक शुभकामनाओं के साथ।
    सादर...!
    डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'

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